Allahabad High CourtAllahabad High Court

Fundamental Right To Keep Or Change A Name – Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्म जाति के अनुसार नाम चुनने और बदलने का मौलिक अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए, 21 और 14 के अंतर्गत यह अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है। इसके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को धर्म और जाति के आधार पर अपना नाम चुनने या बदलने का अधिकार होता है।

यह फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट द्वारा एमडी समीर राव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया गया है। इस याचिका में यह दावा किया गया था कि नाम बदलने को रोकना व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है और इसे संविधान के विपरीत करार देना गलत है।

Allahabad High Court का महत्वपूर्ण फैसला : नाम चुनना या बदलना नागरिक का मूल अधिकार
Allahabad High Court का महत्वपूर्ण फैसला : नाम चुनना या बदलना नागरिक का मूल अधिकार

इस फैसले के साथ ही, हाईकोर्ट ने इंटरमीडिएट रेग्युलेशन 40 को संविधान के अनुच्छेद 25 के विपरीत करार दिया है। इस रेग्युलेशन ने नाम बदलने की समय सीमा और शर्तें थोपी थीं, जो अब यह फैसला रद्द कर दिया गया है।

पहले के आदेश को रद्द करते हुए, Allahabad High Court ने माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव के खिलाफ नाम परिवर्तन की मांग को स्वीकार किया है। कोर्ट ने याचिका का नाम शाहनवाज की जगह एमडी समीर राव करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, याची को पुराने नाम के सभी दस्तावेज संबंधित विभागों में जमा करने का भी निर्देश दिया गया है। इससे उन्हें नए नाम से प्रमाणपत्र जारी किया जा सकेगा और पुराने दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल नहीं होगा।

Allahabad High Court का महत्वपूर्ण फैसला: नाम बदलना नागरिक का मूल अधिकार

मामले की विवरण के अनुसार, याची ने धर्म परिवर्तन किया और नाम बदलने की अर्जी बोर्ड को सौंपी थी। लेकिन बोर्ड सचिव ने नियमों और समय सीमा के हवाले से उसे खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। बोर्ड का दावा था कि नाम बदलने की मियाद तय होती है और कुछ प्रतिबंध होते हैं। हाईकोर्ट ने इस दावे को स्वीकार नहीं किया और कहा कि धर्म और जाति बदलने के साथ नाम बदलना भी आवश्यक हो सकता है,

यह महत्वपूर्ण फैसला नागरिकों के मूल अधिकारों की सुरक्षा के मायने को समझाता है। इस फैसले से धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों की प्रतिष्ठा को मजबूती मिलेगी। यह न्यायप्रणाली के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देगा।

इस फैसले के माध्यम से हाईकोर्ट ने इंटरमीडिएट रेग्युलेशन 40 को संविधान के अनुच्छेद 25 के विपरीत करार दिया है। यह रेग्युलेशन नाम बदलने की समय सीमा और शर्तों को निर्धारित करता था, जिसका पालन करना नागरिकों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक और संविधान के विपरीत घोषित किया है।

Allahabad High Court का महत्वपूर्ण फैसला : नाम चुनना या बदलना नागरिक का मूल अधिकार
Allahabad High Court का महत्वपूर्ण फैसला : नाम चुनना या बदलना नागरिक का मूल अधिकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का अद्यतन मामले में संविधान की मान्यता को बढ़ावा देने के साथ-साथ नागरिकों को अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा करने का एक महत्वपूर्ण उपहार है। यह निर्णय भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को संघर्ष और परेशानियों से बचने की संदेश देता है। धर्म, जाति, और नाम के मामले में लंबे समय से विवाद चल रहे हैं, और यह फैसला इन मामलों को सुलझाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

इस फैसले के बाद से, नागरिकों को नाम बदलने और अपनी पहचान को स्थायी रूप से बदलने का अधिकार है। धार्मिक और सामाजिक दबावों के चलते पहले कई लोगों को अपने नाम में परिवर्तन करने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। यह न्यायप्रणाली ने ऐसे लोगों को मदद करके उन्हें अपने अधिकारों को समर्थन दिया है और उन्हें स्वतंत्रता का एक नया संकेत दिया है।

इस फैसले के साथ ही, हाईकोर्ट ने इंटरमीडिएट रेग्युलेशन 40 को रद्द कर दिया है जो नाम बदलने की सीमा और शर्तें निर्धारित करता था। यह रेग्युलेशन नाम परिवर्तन करने के लिए कठिनाइयों का कारण बन रहा था। हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक और नागरिकों के मूल अधिकारों के विपरीत घोषित किया है। इससे अब नागरिकों को नाम बदलने के लिए

किसी भी अतिरिक्त प्रतिबंध या सीमा का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह फैसला नागरिकों को नाम बदलने की प्रक्रिया में आसानी और सुविधा प्रदान करेगा।

यह महत्वपूर्ण फैसला संविधानिक मानदंडों पर आधारित है और धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान के मूल अधिकार को मजबूती से समर्थन करता है। इससे न सिर्फ नागरिकों को उनके नाम में परिवर्तन करने का अधिकार मिलेगा, बल्कि उन्हें समाज में समानता और आत्मसम्मान की भावना भी प्राप्त होगी।

यह फैसला नाम बदलने के मामलों में एक प्रबल प्रेसीडेंट बन सकता है और इससे आगामी धार्मिक और जातिगत मामलों में भी प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही, यह फैसला न्यायप्रणाली की महत्वपूर्ण उन्नति को दर्शाता है और सामाजिक बदलाव के साथ सामरिकता और न्याय को स्थापित करने के लिए एक प्रगतिशील कदम है।

Allahabad High Court के इस महत्वपूर्ण फैसले ने संविधानिक मानदंडों की मजबूती और न्यायप्रणाली की सशक्तिकरण का प्रमाण पेश किया

यह फैसला नाम बदलने के मामले में विवादों को अंत लगाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इसे लेकर सामाजिक एवं सांस्कृतिक समानता की दृष्टि से यह फैसला महत्वपूर्ण है, क्योंकि नाम एक व्यक्ति की पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के सिद्धांतों को बढ़ावा देगा। इसके माध्यम से व्यक्ति को स्वयं के अनुसार अपना नाम चुनने का अधिकार मिलेगा। धार्मिक और सामाजिक सत्ताओं द्वारा नाम बदलने पर प्रतिबंध लगाना एक अवैधानिक और न्यायविरोधी कदम होगा।

इस फैसले के परिणामस्वरूप, अब सभी नागरिकों को अपने नाम में परिवर्तन करने का समान अधिकार होगा, जो उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक पहचान को मजबूत बनाएगा। यह फैसला विभिन्न धार्मिक समुदायों को अपनी संप्रदायिक पहचान के साथ अपने नामों को चुनने का अवसर देगा।

कोर्ट ने कहा, किसी को अपना नाम बदलने से रोकना उसके मूल अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने इंटरमीडिएट रेग्यूलेशन 40 को अनुच्छेद 25 के विपरीत करार दिया। यह नाम बदलने की समय सीमा व शर्तें थोपती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने एमडी समीर राव की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। भारत सरकार के गृह सचिव व प्रदेश के मुख्य सचिव को इस संबंध में लीगल फ्रेम वर्क तैयार करने का भी आदेश कोर्ट ने दिया है। 

कोर्ट ने सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद के 24 दिसंबर 2020 के आदेश से याची को हाईस्कूल व इंटरमीडिएट प्रमाणपत्र में नाम परिवर्तित करने की मांग अस्वीकार करने के आदेश को रद कर दिया है। साथ ही याची का नाम शाहनवाज के स्थान पर एमडी समीर राव बदलकर नया प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने याची को पुराने नाम के सभी दस्तावेज संबंधित विभागों में जमा करने का निर्देश दिया है ताकि नये नाम से जारी किए जा सकें और पुराने दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल न हो सके।  

Allahabad High Court यह है मामला

याची ने धर्म परिवर्तन किया और नाम बदलने की अर्जी बोर्ड को दी। बोर्ड सचिव ने नियमों व समय सीमा का हवाला देते हुए अर्जी खारिज कर दी। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। बोर्ड का कहना था कि नाम बदलने की मियाद तय है। कतिपय प्रतिबंध हैं। 

याची ने नाम बदलने की अर्जी देने में काफी देरी की है। कोर्ट ने इसे सही नहीं माना और कहा कि यदि कोई धर्म जाति बदलता है तो धार्मिक परंपराओं व मान्यताओं के लिए उसका नाम बदलना जरूरी हो जाता है। उसे ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता, यह मनमाना है। किसी को भी अपनी मर्जी से नाम रखने का मूल अधिकार है।

By Jagnnath Singh Rao

Jagnnath Singh Rao - News Editor and Journalist

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