Udaipur News: उदयपुर शहर में खाने के शौकीनों के लिए एक मशहूर और स्वादिष्ट कचौड़ी की दुकान पालीवाल में स्थित है। यहां के आपके मुंह में पानी आने पर वादा किया जा सकता है कि आप वापस आएंगे।
यहां कि कचौड़ी की खुशबू उदयपुर शहर में फैलती है और यहां के लोगों के बीनते ये लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। अब तक कहीं ना कहीं पता चल गया होगा कि यदि आपको उदयपुर में कचौड़ी खानी है तो आपको कहां जाना होगा।
पालीवाल में स्थित इस दुकान में आपको कचौड़ी के साथ-साथ समोसा, आलूबड़ा, मिर्ची पकोड़ा, पकोड़े, जलेबी और अन्य स्वादिष्ट स्नैक्स भी मिलेंगे। सभी ये व्यंजन यहां भारतीय खाने की महान परंपरा का हिस्सा हैं।
पालीवाल का कचौड़ी का प्यार और महक उदयपुर के दर्शनीय स्थलों के दौरान भी खास होती है। उदयपुर के पर्यटन स्थल पर घूमने वाले अनेक लोग यहां खाने के लिए अवकाश में साथ ले जाते हैं।
पालीवाल में कचौड़ी की एक प्लेट की कीमत बहुत ही आवश्यकता पूर्ण रहती है, सिर्फ 15 रुपय होती है। और सुबह 7 से दोपहर 2 बजे तक ही यहां कचौड़ी उपलब्ध होती है।
फिर चाहे आप उदयपुर शहर के ही रह रहे हो या इसे घूमना ही आपके लिए एक संग्रहशाला की तरह हो, पालीवाल की स्पेशल कचौड़ी जरूर टेस्ट करें। इससे आपका उदयपुर यात्रा और भी स्वादिष्ट और यादगार बना देगी।
सुबह 4 बजे उठकर जुटते हैं तैयारी में, हर दिन बनाते 700 से 800 कचौरियां
सत्यनारायण पालीवाल ने बताया कि उनके पिताजी नाथूलाल पालीवाल जडि़यों की ओल में चाय की दुकान चलाते थे। तीनों भाइयों ने दसवीं तक पढ़ाई की और फिर कचौरी की दुकान शुरू की। उनके चाचा उदयलाल पालीवाल ने कचौरी बनाना सिखाया था और बाद में इसमें उन्होंने अपने हिसाब के मसालोें से फेमस बनाया।
आज तक तीनों भाई खुद ही कचौरी और उसका मसाला बनाते आए हैं, उन्होंने किसी कारीगर को साथ नहीं रखा। उनके साथ उनका भतीजा दिलीप पालीवाल भी उनकी मदद करता है। इसके लिए वे सुबह 4 बजे उठ जाते हैं और दिन में दो-ढाई बजे तक कचौरियां बनाते हैं। हर दिन करीब 700 से 800 कचौरियां बना लेते हैं और रविवार के दिन ये संख्या बढ़कर 1500 के करीब हो जाती है। कचौरियों के अलावा वे समोसे, मिर्ची बड़ा, आलू बड़ा, देसी घी की जलेबी भी बनाते हैं
जायका पुराने शहर का : 45 सालों से कायम है पालीवाल ब्रदर्स की कचौरी का वही स्वाद और अंदाज..
उदयपुर आएं तो यहां जाना ना भूलें, उदयपुर का नाम आते ही खूबसूरत झीलें, पहाड़, हवेलियां, महल आदि आंखों के सामने तैर जाते हैं। लेकिन, उदयपुर का सफर केवल यहीं तक ही नहीं सिमटा हुआ है। यहां के चटपटे, मजेदार, लजीज खानों के बिना पुराने शहर की तंग गलियों का सफर तो अधूरा ही कहलाता है। पुराने शहर का स्वाद भी उसकी उम्र की ही तरह पुराना है लेकिन नौजवान पीढि़यों को ये यहां तक खींच लाता है। साथ ही जो लोग खाने के शौकीन हैं उनके कदम तो यहां की खुशबू और स्वाद के कारण खुद – ब- खुद आ जाते हैं। उदयपुर अब स्मार्ट सिटी में तब्दील होता जा रहा है लेकिन असली धरोहर पुराने शहर में ही है।