भारत के सबसे बड़े लोकल लैंगवेज टेक्नोलॉजी प्लेटफार्म साइनिंग हैंड्स फाउंडेशन, देश में बधिरों के लिए समर्पित सबसे बड़े न्यूज़ एवं एंटरटेनमेंट चैनल वंडरलैब और मशहूर म्यूजिक लेबल ल्युसिफर म्युज़िक ने मिलकर एक ऐसी पहल की शुरुआत की है, जो देश में समावेश की नई इबारत लिखेगी। इस शानदार पहल का नाम है – ‘द राइट साइन’। यह सिर्फ इंडियन साइन लैंगवेज (आईएसएल) यानी भारतीय सांकेतिक भाषा के लिए एक रचनात्मक कैम्पेन नहीं है, बल्कि इसका लक्ष्य इसे सार्थक तरीके से समावेशी बनाकर एक बड़े सामाजिक आंदोलन में तब्दील करना है।
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रैप के रंग में सजी सांकेतिक भाषा, मिटेंगी संवाद की दूरियां!
इस अनूठी पहल के अंतर्गत, भारतीय रैप जगत के कई जाने-माने सितारों ने हाथ मिलाया है। इंदीप बख्शी, वी-टाउन क्रोनिकल्स, एन्कोर और य-श 1हन्ड जैसे लोकप्रिय रैपर्स ने अपने सुपरहिट म्यूजिक वीडियोज़ को एक नए रूप में पेश किया है। उनके प्रसिद्ध गाने – क्रमशः एलोन, फ्लेक्स, ढलता चांद और जो देखा वो लिखा – अब नए सिरे से रिलीज़ किए गए हैं। इस बार इन वीडियोज़ की सबसे खास बात यह है कि इनमें पहले इस्तेमाल किए गए पारंपरिक गैंग संकेतों और इशारों की जगह सार्थक इंडियन साइन लैंगवेज (आईएसएल) की अभिव्यक्तियों को शामिल किया गया है।
इतना ही नहीं, इस कैम्पेन के तहत इन प्रतिभाशाली रैपर्स ने मिलकर 40 जरूरी वाक्यांशों (फ्रेज़) का एक विशेष ट्यूटोरियल भी जारी किया है। यह ट्यूटोरियल उन लाखों लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण टूल साबित होगा जो बधिर समुदाय के साथ अधिक कुशलता और सम्मानजनक तरीके से संवाद करना चाहते हैं।
कलाकारों और क्रिएटर्स के लिए नई प्रेरणा, बढ़ेगी आईएसएल की स्वीकार्यता!
‘द राइट साइन’ पहल का एक और बड़ा और दूरगामी फायदा यह है कि इसने अन्य कलाकारों और कंटेंट क्रिएटर्स को भी अपनी परफॉर्मेंस और कला में सांकेतिक भाषा को शामिल करने के लिए प्रेरित किया है। इससे उम्मीद है कि आईएसएल को धीरे-धीरे एक व्यापक रूप से स्वीकृत कम्युनिकेशन टूल के रूप में पहचान मिलेगी और यह मुख्यधारा की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन जाएगी।
वंडरलैब की रचनात्मकता, ल्युसिफर म्युज़िक का संगीत, समावेश का बनेगा सशक्त माध्यम!
इस महत्वपूर्ण कैम्पेन का रचनात्मक जिम्मा वंडरलैब ने संभाला है, जबकि ल्युसिफर म्युज़िक ने अपने संगीत से इसे और भी आकर्षक और प्रभावशाली बनाया है। यह पहल म्यूजिक और डिजिटल स्टोरीटेलिंग की ताकत को एक साथ लाती है, जिसका एकमात्र उद्देश्य देश भर में एक्सेसिबिलिटी और समावेशिता के लिए एक मजबूत आंदोलन की शुरुआत करना है।
‘द राइट साइन’ का मूल मंत्र: आईएसएल को मुख्यधारा बनाना, संवाद की बाधाएं मिटाना!
‘द राइट साइन’ पहल का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य इंडियन साइन लैंगवेज (आईएसएल) को देश की मुख्यधारा की संस्कृति का एक स्वाभाविक हिस्सा बनाना है। ऐसा करके, इस पहल का उद्देश्य देशभर में बधिर समुदाय के सामने आने वाली कम्युनिकेशन की तमाम बाधाओं को दूर करना है, ताकि वे समाज के हर क्षेत्र में समान रूप से भाग ले सकें और अपनी बात प्रभावी ढंग से रख सकें।
समीर वोरा (चीफ मार्केटिंग ऑफिसर, वर्से इनोवेशन) का विजन:
वर्से इनोवेशन के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर, समीर वोरा ने इस पहल के बारे में अपने विचार साझा करते हुए कहा, “हमने ‘द राइट साइन’ को सिर्फ एक कैम्पेन के तौर पर नहीं, बल्कि एक बुनियादी समावेशिता के आह्वान के रूप में पेश किया है। यह समाज में मौजूद दूरियों को मिटाने के लिए सांस्कृतिक प्रभाव का इस्तेमाल करता है। हमारा प्लेटफार्म रोजाना लाखों लोगों तक पहुंचता है, और हम इस कैम्पेन को एक शक्तिशाली अवसर मानते हैं जो सांकेतिक भाषा को सामान्य बनाएगा और इसे पॉप कल्चर से जोड़ेगा। यह हमारी प्रतिबद्धता की शुरुआत है, और हम पूरे इकोसिस्टम से जुड़े अन्य लोगों को भी इस परिवर्तनकारी सफर में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। ‘द राइट साइन’ वर्से इनोवेशन के समावेशी डिजिटल इकोसिस्टम्स के निर्माण की व्यापक प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो देशभर में विविध समुदायों के लिए मददगार साबित होगा।”
आलोक केजरीवाल (संस्थान एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी, साइनिंग हैंड्स फाउंडेशन) की उम्मीदें:
साइनिंग हैंड्स फाउंडेशन के संस्थान एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी, आलोक केजरीवाल ने इस पहल को लेकर अपनी उम्मीदें व्यक्त करते हुए कहा, “साइन लैंगवेज केवल एक संचार का माध्यम ही नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और उन बुनियादी अधिकारों का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें पहचान मिलनी चाहिए। वर्से इनोवेशन की यह पहल हमारी कम्युनिटी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। वर्से की व्यापक डिजिटल पहुंच का उपयोग करते हुए, ‘द राइट साइन’ जागरूकता को ठोस कार्रवाई में बदलेगा। बधिर समुदाय को आईएसएल अपनाने के लिए सशक्त करते हुए, वर्से ने न सिर्फ उन्हें भारतीय समुदाय की मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास किया है, बल्कि इस बारे में हमारे विचारों को भी नए सिरे से परिभाषित किया है।”
अमित अकाली (सह-संस्थापक एवं मुख्य रचनात्मक अधिकारी (सीसीओ), वंडरलैब) का रचनात्मक दृष्टिकोण:
वंडरलैब के सह-संस्थापक एवं मुख्य रचनात्मक अधिकारी (सीसीओ), अमित अकाली ने इस कैम्पेन के रचनात्मक पहलू पर प्रकाश डालते हुए कहा, “इस कैम्पेन का विचार रैपर्स द्वारा उन गैंग संकेतों के बारे में सांस्कृतिक समझ के इर्द-गिर्द पैदा हुआ जिसकी भारत में कोई प्रासंगिकता नहीं है और युवा उसकी नकल करते हैं, जबकि संकेत भाषा को भारत में अधिकांश लोग समझते हैं। इसीलिए हमने रैप को चुना है, क्योंकि मनोरंजन दरअसल, शिक्षित करने का सर्वोत्तम माध्यम भी है, खासकर तब जब हमारा मिशन भारत को संकेत भाषा सिखाना है।”
ल्युसिफर म्युज़िक का समावेशी संगीत:
ल्युसिफर म्युज़िक ने इस पहल के साथ जुड़कर अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “ल्युसिफर म्युज़िक में, हमारा हमेशा से मानना रहा है कि संगीत हर तरह की सीमाओं से परे होता है – यह भाषाओं, क्षमताओं और पहचान की दीवारों को लांघता है। ‘द राइट साइन’ एक ऐसा ही शक्तिशाली कदम है जो संगीत की सार्वभौमिक भाषा को सांकेतिक भाषा के साथ जोड़कर समावेश का एक नया पुल बनाता है।”
रैपर्स की भावनाएं, समावेश की मजबूत आवाज:
इस पहल से जुड़े रैपर्स ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त कीं:
- एन्कोर: “जब मैंने पहली बार ’द राइट साइन’ के बारे में सुना, तो मैं तुरंत इससे प्रभावित हुआ। हमारे पास यह एक अनमोल अवसर था कि हम अपने वीडियो में संकेतों को एक सार्थक संचार के रूप में शामिल करें और विभिन्न समुदायों के बीच मौजूद दूरियों को मिटाएं।”
- अस्तरिफ – वी टाउन क्रोनिकल्स: “रैप का इस्तेमाल करके, जो कि असल और सीधे स्ट्रीट से जुड़ा हुआ है, सांकेतिक भाषा को मुख्यधारा में शामिल करना मेरे लिए एक अद्भुत और ज्ञानवर्धक अनुभव था। हम अपने वीडियो में हमेशा ही कुछ न कुछ संकेत शामिल करते हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब इन संकेतों का वास्तव में कुछ गहरा और सार्थक मतलब है। संगीत एक शुद्ध भावना की तरह होता है, और सांकेतिक भाषा ने उस अभिव्यक्ति को एक नया और अधिक समावेशी आयाम दिया है। अब यह समय आ गया है कि हम आईएसएल को हर जगह सामान्य रूप से स्वीकार करें, खासकर युवा संस्कृति में तो ऐसा होना ही चाहिए। यह आंदोलन सिर्फ समावेशिता पर केंद्रित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा कदम है जो समाज में सकारात्मक रूपांतरण और बदलाव लाने की क्षमता रखता है।”
यह सहयोगात्मक कैम्पेन न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उत्सव है, बल्कि यह समावेशिता की शक्ति का भी प्रमाण है। ‘द राइट साइन’ देशभर के लोगों को भारतीय सांकेतिक भाषा के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ने, संवाद करने और सशक्त बनने के लिए प्रेरित करता है। यह पहल निश्चित रूप से भारत में समावेश की दिशा में एक महत्वपूर्ण और यादगार कदम साबित होगी।