जयपुर: हाल ही में आयोजित जयपुर एजुकेशन समिट 2025 में एक बार फिर कोटा में हो रही छात्रों की आत्महत्याओं का मुद्दा गरमा गया। समिट के आयोजक सुनील नारनौलिया ने मंच से शिक्षा प्रणाली और कोचिंग इंडस्ट्री पर तीखे सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “शिक्षा का मतलब सिर्फ नंबर लाना नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी जरूरी है। कोटा की घटनाएं हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।”
“पंखे पर डिवाइस नहीं, सिस्टम सुधारिए!”
सुनील नारनौलिया ने कोटा में आत्महत्या रोकने के लिए पंखों पर डिवाइस लगाने जैसे उपायों को ‘समस्या का हल नहीं, बल्कि दिखावा’ बताया। उन्होंने कहा, “छात्रों पर पढ़ाई का इतना दबाव क्यों है कि उन्हें अपनी जान देनी पड़ रही है? शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को आत्मनिर्भर और खुशहाल बनाना है, न कि उन्हें तनाव में डालना।”
समिट में उठे बड़े सवाल:
- जयपुर एजुकेशन समिट 2025 में कोटा की घटनाओं पर खुलकर चर्चा हुई।
- शिक्षा प्रणाली में सुधार की मांग उठी।
- छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की अपील की गई।
- कोचिंग संस्थानों की जिम्मेदारी तय करने की बात कही गई।
“शिक्षा का बोझ नहीं, समाधान चाहिए”
नारनौलिया ने समिट में कहा, “शिक्षा वो शेरनी का दूध है, जो पीएगा वो दहाड़ेगा। लेकिन अगर यही दूध बच्चों के लिए ज़हर बन जाए, तो हमें अपनी प्रणाली पर सवाल उठाने होंगे।”
कोटा सुसाइड: सिस्टम की नाकामी?
गौरतलब है कि हाल ही में कोटा में एक और छात्र ने आत्महत्या कर ली। नीट की तैयारी कर रहे इस छात्र ने अपने हॉस्टल में फंदा लगाकर जान दे दी। यह घटना उन तमाम मुद्दों को फिर से हवा देती है, जो कोचिंग इंडस्ट्री और शिक्षा के मौजूदा मॉडल पर सवाल खड़े करते हैं।
छात्रों के लिए अपील:
सुनील नारनौलिया ने छात्रों और अभिभावकों से अपील करते हुए कहा, “अपने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खुश रहना भी सिखाएं। नंबर से ज्यादा जरूरी है उनका जीवन। शिक्षा का महाकुंभ तभी सार्थक होगा, जब हमारे बच्चे सुरक्षित और खुशहाल होंगे।”
जयपुर एजुकेशन समिट 2025:
20 से 24 जनवरी तक चलने वाले इस समिट में शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, और करियर गाइडेंस पर कई चर्चाएं हुईं। देश-विदेश के शिक्षाविद, समाजसेवी, और विशेषज्ञ इसमें शामिल हुए। समिट का मकसद शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव और छात्रों को सही दिशा देना है।
जयपुर एजुकेशन समिट 2025 ने कोटा सुसाइड जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा के लिए एक मंच दिया। लेकिन क्या यह चर्चा हकीकत में बदलाव ला पाएगी? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।