Suman ShekhawatSuman Shekhawat

Rajasthani Bhasha:

एक बार फिर International Mother language Day आकर चला गया. और 10 करोड़ राजस्थानीयों के दिल में अपनी मातृभाषा को उचित सम्मान ना मिलने का जख्म फिर से हरा कर गया. इसी विषय पर राजस्थानी भाषा में पीएचडी कर रही श्रीमती सुमन शेखावत ने अपने विचार व्यक्त किए.

मातृभाषा क्या है? मातृभाषा वह भाषा है जिसे बालक जन्म लेने के बाद तुतलाती जुबान से अपनी मां से ग्रहण करता है और परिवार की पाठशाला में उसका विस्तार और विकास करता है | किसी प्रदेश के अधिसंख्यक लोग जिस भाषा को बोलते है वह उस प्रदेश की मातृभाषा कहलाती है | लेकिन राजस्थान जैसे प्राचीन और सांस्कृतिक अजायबघर आज भी अपनी मातृभाषा राजस्थानी के मान सम्मान के लिए बरसों से संघर्षरत है |

भाषा और संस्कृति सदा से पूरक रही हैं इनका विकास और पतन साथ-साथ चलता है | किसी भाषा का मरण संस्कृति के विनाश का पूर्वगामी ही होता है | आजादी से पूर्व रजवाड़ों के समय राजकीय और गैर राजकीय पत्रव्यवहार और संवाद राजस्थानी भाषा में ही होता था ,संग्रहालयों की आलमारियों में पड़े उस समय के राजकीय पत्र इसकी साख भरते हैं लेकिन प्रदेश और देश के वर्तमान लोकतांत्रिक सदन आज तक अपनी मातृभाषा का मान नहीं रख पाए हैं |

सबको मालूम है कि जब राजस्थान का एकीकरण हुआ उस वक्त हिन्दी अपनी शैशवावस्था में थी और राजस्थानी इस बड़े भूभाग की मालकिन| हिन्दीपरस्त कुछ लोगों के मानसिक दिवालियेपन के कारण भोले राजस्थानियों की अक्ल मार ली गयी और बाद में राजस्थानी को उचित सम्मान देने का झांसा देकर हिन्दी को स्थापित कर दिया गया | चूंकि दक्षिण भारत में हिन्दी का अस्तित्व जम नहीं पा रहा था इसलिए इसकी थरपना के लिए उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान को हिन्दी के लिए उपजाऊ जमीन बनाया गया | धीरे धीरे हिन्दी स्थापित हो गयी और राजस्थानी पराई भाषा हो गयी |

राजस्थानी युवा समिति

लेकिन अब राजस्थान जाग चुका है , राजस्थानी के लिए आंदोलन तो वर्षों पुराना है लेकिन राज की निष्ठुरता के चलते निराश हताश आंदोलन में राजस्थानी युवा समिति के युवाओं ने जान फूंक दी है और अब आंदोलन आबालवृद्ध होसले के साथ सरकारों की नाक में नकेल कसने को तैयार है| हजारों युवाओं के पास राजस्थानी भाषा में प्राप्त डिग्रियां केवल इसलिए रोजगारपरक नहीं बन पाई है क्योंकि उनकी भाषा को राजकीय मान्यता नहीं है |

राजस्थान की सरकार के लिए तो यह सुनहरा अवसर है जिसमें वो अक्सर कहते हैं कि हमने 2003 में प्रस्ताव भेज दिया था | राजस्थान सरकार के 160+ विधायक राजस्थानी को राजभाषा बनाने के लिए पत्र लिख चुके हैं | 200 विधायकों में से 101 का समर्थन तो बहुमत का आंकड़ा कहलाता है यहाँ तो 160 का समर्थन प्राप्त है | भारत का संविधान अनुमति देता है कि अनुच्छेद 345 और 347 के तहत बिना संवैधानिक मान्यता के भी राज्य सरकार राजभाषा बना सकती है | हालांकि राजभाषा बनने से संवैधानिक मान्यता का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जायेगा लेकिन इससे इस लक्ष्य तक का सफर आसान हो जायेगा | केन्द्र और राज्य के बीच फुटबाल बनी राजस्थानी भाषा संवैधानिक मान्यता के रास्ते चल पड़ेगी | भाषा की मान्यता के संबंध में अब एकदम स्पष्ट होता दिख रहा है कि भाषा को उसका सम्मान केवल राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के कारण ही अभी तक नहीं मिल पाया है |

By manmohan singh

News editor and Journalist

One thought on “Rajasthani Bhasha : आखिर कब मिलेगा दस करोड़ राजस्थानियों की मातृभाषा राजस्थानी को यथोचित सम्मान…?? Suman Shekhawat”

Comments are closed.

Enable Notifications OK No thanks